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Tuesday 27 October 2015

Made in India

कुम्हारन बैठी रोड़ किनारे,
लेकर दीये दो-चार,
जाने क्या होगा अबकी,
करती मन में विचार।।

याद करके आँख भर आई,
पिछली दीवाली त्योहार,
बिक न पाया आधा समान,
चढ गया सर पर उधार !

सोंच रही है, अबकी बार,
दूँगी सारे कर्ज उतार,
सजा रही है, सारे दीये
करीने से बार बार !

पास से गुजरते लोगों को
देखे कातर निहार,
बीत जाए न, अबकी दीवाली जैसा पिछली बार !

नम्र निवेदन मित्रों जनों से,
करता हुँ मैँ मनुहार,
मिट्टी के ही दीये जलाएँ,
दीवाली पर अबकी बार !


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