एक समय की बात है।एक व्यक्ति लंबी यात्रा के लिए एक ऊंट किराये से लेता है।चलते- चलते वह कभी कभी ऊंट की परछाई के नीचे सुस्ता लेता था।
ऊंट का मालिक उससे किराये के अतिरिक्त परछाईं के उपयोग के पैसे भी मांगने लगा।
दोनों राजा के दरबार में जाते हैं।राजा मामला अपने मंत्री के सुपुर्द कर देता है।
"तुम्हारा केस तो बहुत मज़बूत है।" मंत्री ऊंट के मालिक से कहता है।
"किंतु दरबार को परछाई की और अधिक जानकारी चाहिए।जाओ और परछाई को लेकर आओ।"
"क्या!" ऊंट का मालिक कहता है। "कोई परछाई को कैसे ला सकता है?"
"बिना परछाई के आपका केस आगे नहीं बढ़ पाएगा।इसलिए जाओ और जल्दी परछाईं को लेकर आओ। दरबार का समय बहुत कीमती है।" मंत्री ने कहा।
ऊंट का मालिक दरबार से बाहर निकल गया और वह फिर कभी नहीं आया।
ऊंट का मालिक उससे किराये के अतिरिक्त परछाईं के उपयोग के पैसे भी मांगने लगा।
दोनों राजा के दरबार में जाते हैं।राजा मामला अपने मंत्री के सुपुर्द कर देता है।
"तुम्हारा केस तो बहुत मज़बूत है।" मंत्री ऊंट के मालिक से कहता है।
"किंतु दरबार को परछाई की और अधिक जानकारी चाहिए।जाओ और परछाई को लेकर आओ।"
"क्या!" ऊंट का मालिक कहता है। "कोई परछाई को कैसे ला सकता है?"
"बिना परछाई के आपका केस आगे नहीं बढ़ पाएगा।इसलिए जाओ और जल्दी परछाईं को लेकर आओ। दरबार का समय बहुत कीमती है।" मंत्री ने कहा।
ऊंट का मालिक दरबार से बाहर निकल गया और वह फिर कभी नहीं आया।
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